जमशेदपुर वीमेंस यूनिवर्सिटी के एनसीसी डिपार्टमेंट के द्वारा अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष 2023 का आयोजन किया गया ।कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मोटे तथा छोटे अनाजों के प्रति जन जागरूकता फैलाना था। इस कार्यक्रम में मोटे अनाजों के फायदों के बारे बताया गया ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता माननीय कुलपति प्रो.(डॉ.) अंजिला गुप्ता ने की और मिलेट्स या मोटा अनाज के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने संबोधन में कहा की भारत में हमेशा से ही मोटा अनाज खाने की परंपरा रही है और इसका उल्लेख कई प्राचीन साहित्यों में भी मिलता है। संयुक्त राष्ट्र ने साल 2023 को इंटरनेशनल ईयर आफ मिलेट्स घोषित किया है। इसके पीछे संयुक्त राष्ट्र और सरकार का उद्देश्य है कि लोग देसी अनाजों का सेवन ज्यादा से ज्यादा करें । अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 के तहत जिन अनाजों को चिन्हित किया गया है। उसमें मोटे और छोटे अनाज दोनों शामिल है। छोटे अनाज में कंगनी, कोदो, चीना, सांवा और कुटकी है और मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी शामिल है
उन्होंने बताया कि बाजरा पर जलवायु परिवर्तन का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता और बाजरा खराब मिट्टी में भी बहुत कम या बिना किसी सहायता के भी उपज सकता है। यह कम पानी की खपत वाला अनाज है और बहुत कम वर्षा वाले क्षेत्रों, सूखे की स्थिति ,गैर सिंचित परिस्थितियों में इसका उत्पादन संभव है। झारखंड जैसे राज्य में जहां सूखे की स्थिति बनी रहती है वहां पर इस प्रकार की फसलों का उत्पादन कर यहां के कृषक वर्ग के आमदनी का एक स्रोत भी हो सकता है साथ ही साथ सेहत के लिए बहुत ही उपयोगी फसल भी है।
एनसीसी की केयरटेकर ऑफिसर एवं भूगोल विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर मिस प्रीति ने अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के बारे बताया कि वर्ष 2018 में खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा इसे अनुमोदित किया गया और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में घोषित किया । खाद्य सुरक्षा और पोषण में पोषक अनाजों के योगदान के बारे में जागरूक किया, उन्होंने बताया कि इन मोटे अनाज के प्रमाण सबसे पहले सिंधु सभ्यता में पाए गए और यह भोजन के लिए उगाए जाने वाले पहले पौधों में से एक थे । मोटे अनाज को अपनी खाने में जोड़कर अपनी सेहत को बेहतर बनाया जा सकता है इसमें पोषण भी अधिक होता है और शरीर की इम्यूनिटी भी मजबूत होती है साथ ही बीमारियों से लड़ने में शक्ति मिलती है।
होम साइंस विभाग की सहायक अध्यापक डॉक्टर डी पुष्पलता मोटे अनाजों के बारे में बताया कि प्राचीनतम साहित्यों में इन मोटे अनाज को श्री अन्न कहा गया है। भारत हमेशा से इन अनाजों की खेती करता रहा है। उन्होंने अपने विभाग में रागी जैसे मोटे अनाजों पर रिसर्च कार्य किया है ताकि इस अनाज के गुणों का फायदा जन जन तक पहुंच सके। उन्होंने यजुर्वेद का भी जिक्र किया और बताया कि यजुर्वेद में भी मोटा अनाज की खेती और इसके प्रयोग का उल्लेख मिलता है भूगोल विभाग की टीचिंग असिस्टेंट मिस पायल शर्मा ने भी बताया कि इन अनाजों में उच्च प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, लौह तत्व जैसे खनिजों के कारण यह गेहूं एवं चावल से बेहतर होते हैं बाजरा में कैल्शियम और मैग्नीशियम से भरपूर होता है रागी को भी खाद्यान्नों में सबसे अधिक कैल्शियम सामग्री के लिए जाना जाता है। यह ग्लूटेन फ्री तथा जिनका गलाइसेमिक इंडेक्स कम होता है। जिसमें मोटापे और मधुमेह जैसे स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने में मदद मिलती है क्योंकि यह ग्लूटेन फ्री होते हैं।
विभिन्न एनसीसी कैडेट्स काजल कुमारी, भारती कुमारी, अनीमा कुमारी ,अनमोल परी मिश्रा, रश्मि कुमारी और खुशी कुमारी ने विभिन्न मोटे अनाजों के ऊपर अपना वक्तव्य दिया और बहुत सारी छात्राओं ने इस कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर भाग लिया।