जादूगोड़ा : लोक आस्था के महान पर्व छठ की तैयारियों में जहाँ एक तरफ इस पर्व से जुड़े लोग जुटे हैं . वहीँ कच्चे बांस के बने सूप और दोउरा की भी बाज़ार में काफी मांग है . हालाँकि वर्तमान समय में लोग पीतल के बने सूप का भी उपयोग पूजा में करने लगे हैं मगर कच्चे बांस के बने सूप और दोउरा की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी वर्षों पहले थी. क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में छठ पर्व के आते ही कच्चे बांसों को चीर कर सूप , दोउरा और टोकरी को बीनने का काम शुरू हो जाता है. जादूगोड़ा के बाज़ार में कच्चे बांस के बने इन सूप , दोउरा और टोकरी की बड़ी मांग है. पहले की अपेक्षा अभी मूल्य में वृद्धि हुई है मगर लोक आस्था पर इन बढती कीमतों का कोई प्रभाव नहीं है.
इस पेशे से जुडी ग्रामीण महिला बताती हैं की वर्तमान में कच्चे बांस महंगे हो गए हैं जिसके कारण इन सभी वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि करनी पड़ी है मगर गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं है. उन्होंने बताया की उनका पूरा परिवार छठ पूजा का साल भर इंतज़ार करता है. क्योंकि इस महान पर्व में उनके हाथों से बनाये हुए सूप और अन्य सामग्रियां प्रयोग में लाई जाती है. जिससे सभी लोगों को इस पर्व में स्वयं के अप्रत्यक्ष रूप से योगदान की अनुभूति होती है .
इधर नहाय -खाय के दूसरे दिन सभी छठ व्रती महिलायें खरना की तैयारियों में जुटी है . खरना का अर्थ है शुद्धिकरण . इसके लिए पूरी तरह से अलग की गयी रसोई में चूल्हे पर आम की लकड़ी का प्रयोग करके गुड और चीनी के मिश्रण वाला खीर बनाया जा रहा है. शाम को गोधुली बेला में खीर और रोटी का भोग छठी मैया को अर्पित करके सबसे पहले छठ वर्ती इसे ग्रहण करेंगे. इसके बाद देर रात तक प्रसाद बांटने और खाने का दौर चलता रहेगा. कह सकते हैं की समाज के हर वर्ग के लोगों को आपस में बिना किसी भेद -भाव के जोड़े रखने वाला यह पर्व है.
खरना के बाद रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को छठ घाटों में जल के भीतर खड़े होकर सभी लोग अर्ध्य देंगे . सोमवार और उदित होते सूर्य को अर्ध्य देने के साथ इस पर्व का समापन होगा.