जमशेदपुर: विगत दिनों जमशेदपुर के श्रमजीवी पत्रकार विनोद कुमार दास का इलाज के अभाव में निधन हो गया . सारी जिन्दगी सादगी से जीनेवाले एक श्रमजीवी पत्रकार का आर्थिक समस्या से जूझते हुए इस दुनिया से चला जाना वाकई पूरे पत्रकारिता जगत के लिए एक बड़ा प्रश्न छोड़ गया है . मौजूदा समय में जमशेदपुर में प्रेस क्लब के नाम से दो संगठन सक्रीय हैं . जिसमे से एक संगठन तो क्रिकेट मैच करवाने के नाम पर सदस्यों से भी माल वसूलता है और शहर के जाने -माने लोगों से भी चंदा के नाम पर लाखों रुपये अन्दर कर लेता है. मगर बात जब पत्रकार हित की आती है तो यही प्रेस क्लब के लोग सांस भी नहीं लेते हैं. जिस पत्रकार हित के नाम पर करोड़ों का फंड वसूला जाता है उसकी एक पाई भी किसी पत्रकार के हित में आज तक खर्च नहीं की गयी . वसूली का पैसा जाता कहाँ है इसका कोई हिसाब नहीं है .
आल इंडिया स्माल एंड मीडियम जर्नलिस्ट एशोसिएशन पूर्वी सिंहभूम इकाई इस मामले में अपवाद है जब भी किसी पत्रकार के हित की बात आयी तो बिना किसी भेद -भाव के इस एकमात्र संगठन ने पत्रकारों के हित में आवाज़ उठाई पीड़ित को न्याय दिलाने में कामयाब भी रहा . पत्रकार विनोद दास के निधन में इस संगठन ने जिस प्रकार तत्परता दिखाई है और उनके परिवार की मदद के लिए आगे बढे हैं . वो वाकई इस संगठन में शामिल लोगों की संवेदनशीलता को दर्शाता है . अपने वचन को निभाते हुए आल इंडिया स्माल एंड मीडियम जर्नलिस्ट एशोसिएशन के जिलाध्यक्ष विनोद सिंह, महासचिव आशीष गुप्ता और सचिव अरूप मजूमदार ने राष्ट्रीय महासचिव प्रीतम सिंह भाटिया के मार्गदर्शन में कोष संग्रह करना शुरू कर दिया है . इस अभियान का काफी उत्साहजनक परिणाम महज कुछ घंटो में ही सामने आया है. उम्मीद है की आगामी रविवार तक उस परिवार को इतना मिल जायगा की उनका श्राद्ध कर्म आराम से निपट जाये.
इस दौरान पीडित परिवार से मिलने गए एशोसिएशन के शहरी जिला सचिव अरूप मजूमदार ने उस परिवार से मिलने के बाद बड़ा ही मार्मिक लेख लिखा है जिसे हु -बहु प्रकाशित किया जा रहा है.
आज जो पत्रकारिता का दौर आप देख रहे हैं और पहले का जो दौर था इसमें काफी बदलाव आया है.आज छोटे से पोर्टल और युट्युब चैनल चलाकर भी पत्रकारों को कार और बड़े फ्लैट मेंनटेन करते देखा जा सकता है लेकिन कभी ऐसा समय था जब 1000-1500 रूपए ही हाऊस पत्रकारों को वेतन दिया करता था जिस पर परिवार के मुखिया के सिर पर आश्रितों का भारी बोझ होता था.
तंगहाली और बदनसीबी की मार झेलता एक पत्रकार आज भी हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं.मेरे विचार से इस खबर को हर पत्रकार और विशेषकर हाऊस के मालिक व संपादकों को पढ़नी चाहिए.जमशेदपुर के परसुडीह थाना क्षेत्र में रहने वाले ईमानदार एवं श्रमजीवी पत्रकार बिनोद दास का देहांत गत् दिनों बेहतर ईलाज के अभाव में हो गया.बिनोद दास के अंतिम समय में बदतर हालात से जुझते हुए कुछ पत्रकारों ने ही साथ दिया और सरकारी अस्पताल के चक्कर काटते वो इंसान काल के गाल में समा गया.
इस झकझोर देने वाली घटना का मैं खुद प्रमाण भी हूं और जो मैंने देखा तो लगा कि पत्रकार होने के लिए ईमानदारी का जरूरत से ज्यादा होना क्या सही है?अगर सच पूछिए तो एक ईमानदार पत्रकार अगर अच्छे वेतनमान पर नहीं है तो उसे तुरंत पत्रकारिता छोड़ देनी चाहिए? खासकर तब जब आपके पीछे एक भरा-पूरा परिवार हो.
पत्रकारिता का जुनून ऐसा था कि बिनोद के परिवार को पसंद न था क्योंकि वो एक ईमानदार और स्वतंत्र पत्रकार था.परिवार के लोग चाहते थे कि बिनोद कुछ ऐसा काम करें जिससे परिवार चले लेकिन वह सुनता नहीं था.नतीजतन बिनोद ने अपने पत्नी और बच्चों को ही छोड़ दिया और घर से अलग रहने लगा.जिस घांस फूस के छोटे से कोठरे में वह रहता था वहां लोग जानवरों को भी न रखें.ऐसी बदतर जिंदगी जीते हुए भी वह फटेहाल मुस्कुराते दिखाई देता था.
एक पत्रकार की दुखभरी दास्तां लिखने की हिम्मत नहीं है और अगर मैं लिख दूं शायद ही कोई पत्थर दिल होगा जिसके आंसू न निकलेंगे.
आज शाम जब मैं ऐसोसिएशन के निर्देश पर उसके परिवार से मिला तो पता चला कि घर की माली हालत बहुत ही खराब है रविवार को विनोद दास का श्राद्ध कर्म है और परिवार के पास कुछ भी नहीं है.शायद हम सभी को आज पत्रकार होने का धर्म निभाना चाहिए इसलिए मैं उनके बेटे अभिषेक दास के बैंक एकाउंट और मोबाईल स्कैनर भेज कर आपसे मदद की अपील कर रहा हूं.
वैसे AISMJWA ऐसोसिएशन से जमशेदपुर शहरी जिला ईकाई द्वारा 50 हजार रुपए और एक वर्ष का सूखा राशन देने का प्रयास हमलोग कर रहे हैं लेकिन फिर भी इस परिवार को सभी संगठनों और सभी पत्रकारों की ओर से मदद मिलनी चाहिए.
🙏🏻आपका साथी🙏🏻
अरूप मजूमदार,
जिला सचिव,AISMJWA, जमशेदपुर