चाकुलिया : अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत पड़ता है. इस व्रत को जिउतिया या फिर जितिया व्रत भी कहा जाता है. यह त्योहार खासकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है. यह व्रत पुत्रों के लिए किया जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को विधि विधान से रखने पर पुत्रों को दीर्घायु होने का वरदान मिलता है. साथ ही उनका जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है. इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत यानी जिउतिया को लेकर महिलाओं में असमंजस की स्थिति है. वहीं ज्योतिषाचार्य के मुताबिक मिथिला पंचाग की महिलाएं 6 अक्टूबर को व्रत रखेगी और सनातन परंपरा की महिलाएं 7 अक्टूबर को व्रत रखेगी. जितिया व्रत के पारण में महिलाएं लाल रंग का गले में पहनती है. व्रती महिलाएं जितिया का लॉकेट भी धारण करती हैं. जितिया व्रत की पूजा के दौरान सरसों का तेल और खल चढ़ाया जाता है. व्रत पारण के बाद यह तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद के तौर पर लगाते हैं. जीवित्पुत्रिका व्रत को रखने से पहले कुछ जगहों पर महिलाएं गेहूं के आटे की रोटियां खाने की बजाए मरुआ के आटे की रोटियां भी खाती हैं. इस परंपरा के पीछे का कारण स्पष्ट नहीं है लेकिन ऐसा सदियों से होता आ रहा है. इस व्रत से पहले नोनी का साग खाने की भी परंपरा है. कहा जाता है कि नोनी का साग में कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में होता है. जिसके कारण व्रती के शरीर को पोषक तत्वों की कमी नहीं होती है. सनातन धर्म में पूजा-पाठ में मांसाहार का सेवन वर्जित माना गया है. लेकिन इस व्रत की शुरुआत बिहार में कई जगहों पर मछली खाकर की जाती है. कहते हैं कि इस परंपरा के पीछे जिवित्पुत्रिका व्रत की कथा में वर्णित चील और सियार का होना है.
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